Thursday, 26 November 2015

एक लम्हा

रात के अँधेरे में
अधखुले रोशनदान से
चुपके से उतर आता है
एक लम्हा

क्या तुझे याद है वो लम्हा
जब चुपके से
दुनिया से दूर एक कोने में
मेरे हाथ में रख दी थी
तूने तमाम दौलतें
और
मैं खोया था
उस मखमली हाथ की छुअन में
अधजगा सा
देख रहा था बन्द आँखों से
तेरे चेहरे पे पसरी
गुलाबी रंगत
और
थरथराते अधर
जिनसे बिन बोले कहा था तूने
तुम मेरे हो सिर्फ मेरे

और तुझे पता है
उसी एक पल में रुक गया था वक़्त
मेरे लिए
वो लम्हा जिन्दा है मुझमें
मुझसे ज्यादा ...... !!!!!!

गर कभी झाँकना हो अतीत में
तो देखना इन खामोश आँखों में
तुम्हें मिलेगा
एक मासूम हाथ और गुलाबी रंगत .........vsal